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“पिता को खोया, लेकिन कश्मीर में मिले दो भाई!” पहलगाम हमले की कहानी

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जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने न केवल देश को हिलाकर रख दिया, बल्कि कई परिवारों की जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी। इस हमले में 26 पर्यटकों की जान गई, जिनमें कोच्चि की रहने वाली आरती आर मेनन के पिता एन रामचंद्रन भी शामिल थे। आरती ने इस भयावह घटना की आंखों देखी कहानी साझा की, जिसमें दर्द, हिम्मत, और मानवता की उम्मीद की झलक दिखती है। उनकी कहानी न केवल एक त्रासदी की गवाही देती है, बल्कि कश्मीर की मिट्टी में बसी भाईचारे की भावना को भी उजागर करती है।

वह पल जब सब कुछ बदल गया

पहलगाम की खूबसूरत बाइसारन घाटी में उस दिन सैलानियों की चहल-पहल थी। आरती अपने पिता, छह साल के जुड़वां बेटों, और परिवार के साथ घूमने आई थीं। उनकी मां शीला कार में रुकी थीं। अचानक गोलियों की आवाज ने हंसी-खुशी के माहौल को मातम में बदल दिया। आरती ने बताया कि पहले उन्हें लगा कि यह पटाखों की आवाज है, लेकिन दूसरी गोली ने सच्चाई सामने ला दी। आतंकियों ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी थी। आरती के पिता और बेटे एक घास के मैदान से गुजर रहे थे, जब यह हमला हुआ। उस पल को याद करते हुए आरती की आवाज कांप उठी। उन्होंने कहा, “एक आतंकी जंगल से निकला, उसने कुछ बोला जो हम समझ नहीं पाए। फिर उसने गोली चला दी। मेरे पिता मेरे बगल में ही गिर पड़े।”

जंगल में भटकन और जिंदगी की जंग

हमले के बाद अफरा-तफरी मच गई। लोग इधर-उधर भागने लगे। आरती अपने बेटों को लेकर बाड़ के नीचे रेंगकर जंगल में छिप गईं। करीब एक घंटे तक वे जंगल में भटकती रहीं, डर और अनिश्चितता के साये में। उनके बेटे डर से चिल्लाने लगे, जिसके बाद वह आतंकी भाग गया। आरती ने बताया, “मुझे पता था कि पापा हमें छोड़कर चले गए। मैंने बच्चों को संभाला और वहां से निकलने की कोशिश की। मेरा फोन सिग्नल खो चुका था, लेकिन मैंने अपने ड्राइवर को कॉल करने की कोशिश की।” इस मुश्किल घड़ी में आरती का हौसला और मां का प्यार ही उनकी ताकत बना।

कश्मीर के भाइयों का साथ

इस त्रासदी के बीच आरती को कश्मीर के दो अजनबियों, मुसाफिर और समीर, से अनमोल सहारा मिला। ये दोनों उनके लिए परिवार की तरह बन गए। आरती ने भावुक होकर बताया, “मुसाफिर और समीर मेरे भाई बन गए। उन्होंने मुझे मोर्चरी तक पहुंचाया, हर कदम पर मेरा साथ दिया। मैं रात तीन बजे तक वहां थी, और वे मेरे साथ खड़े रहे। उनकी मदद ने मुझे हिम्मत दी।” जब आरती श्रीनगर से वापस लौट रही थीं, तो उन्होंने मुसाफिर और समीर से कहा, “अब कश्मीर में मेरे दो भाई हैं। अल्लाह आपकी हिफाजत करे।” यह पल कश्मीर की उस संस्कृति को दर्शाता है, जो मुसीबत में भी इंसानियत को जिंदा रखती है।

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