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भूपेन हज़ारिका की जन्मशती पर असम में वर्षभर का समारोह शुरू – प्रधानमंत्री 13 को होंगे शामिल

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गुवाहाटी, 08 सितम्बर (Udaipur Kiran) । भारतरत्न डॉ. भूपेन हज़ारिका की जन्मशती के अवसर पर असम सरकार ने सोमवार को वर्षभर चलने वाले भव्य आयोजनों की शुरुआत की। उद्घाटन समारोह गुवाहाटी स्थित सुधाकंठ डॉ. भूपेन हज़ारिका समन्वय क्षेत्र में हुआ, जहां राज्यपाल लक्ष्मण प्रसाद आचार्य और मुख्यमंत्री डॉ हिमंत बिस्व सरमा ने उनके स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित की। इस अवसर पर सौ प्रमुख व्यक्तित्वों ने सामूहिक रूप से ध्वजारोहण किया और भूपेन दा की अमर धुनों पर सांगीतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया।

हज़ारिका के पुत्र तेज हज़ारिका अपनी पत्नी व बेटे के साथ अमेरिका से विशेष रूप से इन आयोजनों में शामिल होने पहुंचे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी 13 सितम्बर को असम प्रवास के दौरान इस शताब्दी समारोह में सम्मिलित होंगे, जिससे इसे राष्ट्रीय स्तर पर और भी महत्व मिलेगा।

मुख्यमंत्री सरमा ने उन्हें “मानवता की वैश्विक आवाज़” करार देते हुए कहा कि भूपेन दा का जीवन स्वयं में एक प्रेरणा है। उन्होंने लिखा—“उन्होंने असम को विश्वपटल तक पहुंचाया, उनकी धुनें मानवता का गान और प्रेम का घोष बन गईं।”

भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा भूपेन हज़ारिका को मरणोपरांत भारतरत्न प्रदान करने, डिब्रूगढ़ हवाई अड्डे का नामकरण उनके नाम पर करने तथा स्मारक सिक्का जारी करने का उल्लेख करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि यह असम और इसकी संस्कृति के लिए अभूतपूर्व सम्मान है।

सुधाकंठ के छोटे भाई समर हज़ारिका ने राज्य सरकार की इस पहल को ऐतिहासिक बताते हुए कहा—“यह पहली बार है जब किसी असमिया कलाकार को इस स्तर पर पूरे राष्ट्र में सम्मानित किया जा रहा है।”

इधर, भूपेन हज़ारिका सांस्कृतिक ट्रस्ट ने श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र में दीप प्रज्ज्वलन और सांगीतिक कार्यक्रम का आयोजन किया। जिले-दर-जिले भी कार्यक्रमों की तैयारी चल रही है। नगांव में 10 सितम्बर को 15,000 छात्र-छात्राएं सामूहिक रूप से ‘मनुहे मनुहोर बाबे’ गीत गाकर श्रद्धांजलि देंगे। इस कार्यक्रम को इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज किया जाएगा।

भूपेन हज़ारिका, जिन्हें सुधाकंठ के नाम से जाना जाता है, का जन्म 8 सितम्बर 1926 को तिनसुकिया जिले के सदिया में हुआ था। उनका संगीत सीमाओं से परे जाकर मानवता, न्याय और करुणा के संदेश को गाता रहा, और इसी कारण वे आज भी असम और भारत की सांस्कृतिक पहचान बने हुए हैं।

(Udaipur Kiran) / श्रीप्रकाश

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