नई दिल्ली: दुनिया में सबसे ज्यादा रेमिटेंस भारत में आता है। रेमिटेंस का मतलब उन पैसों से है जो विदेशों में काम करने वाले भारतीय वर्कर्स स्वदेश भेजते हैं। लेकिन अब इसका एक हिस्सा अलग तरीके से आ रहा है। ईटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक लगभग दो महीनों से यह पैसा पारंपरिक बैंक ट्रांसफर के बजाय स्टेबलकॉइन के रूप में आ रहा है। स्टेबलकॉइन एक तरह की क्रिप्टोकरेंसी है। भारत में USDT या स्टेबलकॉइन 4-5% प्रीमियम पर बिकता है, इसलिए क्रिप्टो से भेजा गया पैसा बैंक ट्रांसफर से ज्यादा फायदेमंद होता है।
अमेरिकी डॉलर से जुड़ा स्टेबलकॉइन टेथर कंपनी द्वारा जारी किया जाता है। USDT डॉलर का एक विकल्प है। भारत में इसकी कीमत लगभग ₹93 है जबकि रुपये और डॉलर का एक्सचेंज रेट ₹88.6 प्रति डॉलर है। अगर कोई भारतीय वर्कर यूएई या अमेरिका से सामान्य बैंकिंग चैनलों के माध्यम से $1,000 भेजता है तो उसे ₹88,600 मिलेंगे। लेकिन अगर वही व्यक्ति दुबई या न्यू जर्सी में USDT खरीदता है और उसे भारत में बेचता है, तो शनिवार की USDT कीमत ₹93.15 प्रति कॉइन के हिसाब से उसे ₹93,150 मिलेंगे।
टीडीएस कैसे बचेगा?
जब कोई एनआरआई वर्कर किसी मनी चेंजर के दफ्तर में जाता है, तो शायद उसे इस फायदे के बारे में पता नहीं होता। लेकिन काउंटर पर बैठा व्यक्ति पैसे बैंक में ट्रांसफर करने के बजाय USDT खरीदता है और उसे भारत में बैठे अपने साथी के वॉलेट में भेज देता है। वह साथी इन कॉइंस को पीयर-टू-पीयर डील में बेच सकता है। यहां क्रिप्टो बायर और सेलर टेलीग्राम या अनरेगुलेटेड प्लेटफॉर्म पर मिलते हैं। इससे स्रोत पर 1% टैक्स ( TDS) से बचा जा सकता है। या फिर, वह इसे स्थानीय एक्सचेंज पर बेच सकता है, TDS का भुगतान कर सकता है और फिर भी उसके पास अतिरिक्त पैसा बचता है, जिसे ग्राहकों के साथ बांटा जाता है।
पैसे बदलने वाले थोड़ा ज्यादा कमाते हैं और उनके ग्राहक अपने रिश्तेदारों को थोड़ा ज्यादा पैसा भेज पाते हैं। इसके अलावा, ये लेनदेन बैंकों की तुलना में तेज और सस्ते होते हैं। हालांकि ये नियमों के अनुसार पूरी तरह से सही नहीं हैं। कुछ मनी ट्रांसफर फर्मों ने RBI के कुछ अधिकारियों के साथ इस मामले पर अनौपचारिक रूप से चर्चा की है। बाजार के अनुमानों के अनुसार लगभग 3-4% रेमिटेंस बैंकों से स्टेबलकॉइन की ओर चला गया है।
बैंकों की चिंता
एडवोकेट और क्रिप्टो लीगल के फाउंडर पुरुषोत्तम आनंद ने कहा कि कुछ जगहों पर मनी ट्रांसमिटर अब फिएट करेंसी के साथ-साथ क्रिप्टो में भी रेमिटेंस को हैंडल करने की अनुमति देते हैं। उदाहरण के लिए अमेरिका में मनी ट्रांसमिशन लाइसेंस वाली कंपनी USD स्वीकार कर सकती है, उसे स्टेबलकॉइन में बदल सकती है और भारत में लाभार्थी के डिजिटल वॉलेट में भेज सकती है। हालांकि यह अभी शुरुआती दौर में है और यह फ्लो इतना बड़ा नहीं है कि बैंकों को चिंता हो।
अमेरिकी डॉलर से जुड़ा स्टेबलकॉइन टेथर कंपनी द्वारा जारी किया जाता है। USDT डॉलर का एक विकल्प है। भारत में इसकी कीमत लगभग ₹93 है जबकि रुपये और डॉलर का एक्सचेंज रेट ₹88.6 प्रति डॉलर है। अगर कोई भारतीय वर्कर यूएई या अमेरिका से सामान्य बैंकिंग चैनलों के माध्यम से $1,000 भेजता है तो उसे ₹88,600 मिलेंगे। लेकिन अगर वही व्यक्ति दुबई या न्यू जर्सी में USDT खरीदता है और उसे भारत में बेचता है, तो शनिवार की USDT कीमत ₹93.15 प्रति कॉइन के हिसाब से उसे ₹93,150 मिलेंगे।
टीडीएस कैसे बचेगा?
जब कोई एनआरआई वर्कर किसी मनी चेंजर के दफ्तर में जाता है, तो शायद उसे इस फायदे के बारे में पता नहीं होता। लेकिन काउंटर पर बैठा व्यक्ति पैसे बैंक में ट्रांसफर करने के बजाय USDT खरीदता है और उसे भारत में बैठे अपने साथी के वॉलेट में भेज देता है। वह साथी इन कॉइंस को पीयर-टू-पीयर डील में बेच सकता है। यहां क्रिप्टो बायर और सेलर टेलीग्राम या अनरेगुलेटेड प्लेटफॉर्म पर मिलते हैं। इससे स्रोत पर 1% टैक्स ( TDS) से बचा जा सकता है। या फिर, वह इसे स्थानीय एक्सचेंज पर बेच सकता है, TDS का भुगतान कर सकता है और फिर भी उसके पास अतिरिक्त पैसा बचता है, जिसे ग्राहकों के साथ बांटा जाता है।
पैसे बदलने वाले थोड़ा ज्यादा कमाते हैं और उनके ग्राहक अपने रिश्तेदारों को थोड़ा ज्यादा पैसा भेज पाते हैं। इसके अलावा, ये लेनदेन बैंकों की तुलना में तेज और सस्ते होते हैं। हालांकि ये नियमों के अनुसार पूरी तरह से सही नहीं हैं। कुछ मनी ट्रांसफर फर्मों ने RBI के कुछ अधिकारियों के साथ इस मामले पर अनौपचारिक रूप से चर्चा की है। बाजार के अनुमानों के अनुसार लगभग 3-4% रेमिटेंस बैंकों से स्टेबलकॉइन की ओर चला गया है।
बैंकों की चिंता
एडवोकेट और क्रिप्टो लीगल के फाउंडर पुरुषोत्तम आनंद ने कहा कि कुछ जगहों पर मनी ट्रांसमिटर अब फिएट करेंसी के साथ-साथ क्रिप्टो में भी रेमिटेंस को हैंडल करने की अनुमति देते हैं। उदाहरण के लिए अमेरिका में मनी ट्रांसमिशन लाइसेंस वाली कंपनी USD स्वीकार कर सकती है, उसे स्टेबलकॉइन में बदल सकती है और भारत में लाभार्थी के डिजिटल वॉलेट में भेज सकती है। हालांकि यह अभी शुरुआती दौर में है और यह फ्लो इतना बड़ा नहीं है कि बैंकों को चिंता हो।
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