नई दिल्ली: वरुण वुम्मादी को न स्टैनफोर्ड का पीएचडी ऑफर लुभा पाया। न ही 5,25,000 डॉलर (लगभग 5 करोड़) की नौकरी की पेशकश (Job Offer)। उन्होंने 2023 में ही कुछ और इरादे बना लिए थे। इन बड़े ऑफरों को ठुकराकर वरुण ने अपने दोस्त ए. मणिदीप के साथ गीगा नाम का एआई स्टार्टअप शुरू किया। यह कंपनियों के ग्राहकों से बातचीत करने के तरीके को बदलने का काम करता है। वरुण और मणिदीप दोनों आईआईटी खड़गपुर के पढ़े हैं। गीगा बड़े पैमाने पर ग्राहक सेवाओं को ऑटोमेट कर सकता है। अलग-अलग भाषाओं में एक साथ चैट और बात करने में समर्थ है। दो साल बाद इस जोड़ी की मेहनत रंग लाई है। गीगा ने सिलिकॉन वैली के बड़े निवेशकों से 6.1 करोड़ डॉलर (सीरीज ए) जुटाए हैं। यह स्टार्टअप फूड डिलीवरी कंपनी डोरडैश (DoorDash) जैसी बड़ी कंपनियों के साथ काम कर रहा है। आंध्र प्रदेश के विधायक नारा लोकेश ने भी वरुण वुम्मादी की इस उपलब्धि पर खुशी जाहिर की है।
25 साल के वरुण की कहानी सिर्फ पैसों की नहीं है। यह उस बड़े फैसले की है जो उन्होंने लिया। दो साल पहले वरुण और मणिदीप अपने भविष्य के बारे में सोच रहे थे। मणिदीप को एक भारतीय हाई-फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग (HFT) फर्म से 1,50,000 डॉलर का ऑफर मिला था। वहीं, वरुण को स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी का ऑफर और एक अंतरराष्ट्रीय एचएफटी कंपनी से 525,000 डॉलर (करीब 5 करोड़ रुपये) की नौकरी का प्रस्ताव मिला था। लेकिन, उन्होंने इन सभी शानदार मौकों को छोड़ दिया। वरुण ने एक लिंक्डइन पोस्ट में बताया, 'हमने मशीन लर्निंग में चुनौतीपूर्ण समस्याओं को हल करने के अपने जुनून को पूरा करने के लिए उन सभी अवसरों को छोड़ दिया।'
इरादा था पक्का
यह कोई बहादुरी का काम नहीं था, बल्कि पक्का इरादा था। उन्हें लगा कि कंपनियों को कस्टम एआई की जरूरत है। वे एंटरप्राइज एलएलएम (लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स) को जीपीटी-4 जैसे मौजूदा मॉडल्स से ज्यादा तेज और सस्ता बना सकते हैं। वरुण ने तब कहा था, 'हमारे फाइन-ट्यून्ड मॉडल जीपीटी-4 एपीआई से 3 गुना तेज हैं। हम 70% सस्ते हैं और किसी खास काम में जीपीटी-4 से बेहतर प्रदर्शन करते हैं। इनमें स्वास्थ्य सेवा और बीमा शामिल हैं। फाइन-ट्यूनिंग के बाद हम जीपीटी-4+ प्रॉम्प्टिंग तकनीकों से बेहतर हैं।'
खासकर बीमा, स्वास्थ्य सेवा और कानून जैसे क्षेत्रों में डेटा प्राइवेसी की वजह से बने-बनाए एआई टूल्स का इस्तेमाल करना मुश्किल होता है। गीगा के मॉडल मल्टी-इंटेंट कन्वर्सेशन (एक साथ कई तरह की बातें समझना), मल्टीलिंगुअल कॉन्टेक्स्ट (अलग-अलग भाषाओं को समझना) और ब्रांड-लेवल डेटा प्राइवेसी (कंपनी की डेटा सुरक्षा) को संभालने के लिए बनाए गए हैं। ये वो खूबियां हैं जिनकी बड़े ग्राहक मांग करते हैं। वरुण ने इंटरव्यू में बताया कि मशीनें अब बारीकियों, आवाज के उतार-चढ़ाव और भावनाओं को समझ सकती हैं। यह सिर्फ एक और चैटबॉट नहीं है।
क्या है टारगेट?
गीगा का टारगेट बहुत सीधा है- ग्राहक सेवाओं को ऑटोमेट करना। अगर आपने कभी सपोर्ट चैट में एक ही बात बार-बार नए एजेंटों को बताते हुए घंटों बिताए हैं तो आप इस समस्या को समझते हैं। गीगा इस प्रक्रिया को वॉयस और चैट एआई एजेंटों से बदलना या बेहतर बनाना चाहता है। ये एजेंट एक साथ कई बातचीत संभाल सकते हैं, स्वाभाविक और अनुकूल आवाज में बात कर सकते हैं, कंपनी के वर्कफ्लो को समझ सकते हैं, बड़े सिस्टम में इंटीग्रेट हो सकते हैं और कई भाषाओं का समर्थन कर सकते हैं।
कंपनी तीन बड़ी इंजीनियरिंग समस्याओं को हल करने की कोशिश कर रही है। इनमें एआई की ओर से गलत जानकारी देने (हैल्यूसिनेशंस) को लगभग शून्य करना, हर दिन करोड़ों कॉल को संभालने की क्षमता विकसित करना और 400 मिलीसेकंड से कम समय में वॉयस रिस्पॉन्स देना शामिल है।
वरुण और मणिदीप ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर जो वीडियो शेयर किया है, उसमें एआई की आवाज 'Her' फिल्म की स्कारलेट जोहानसन जैसी लगती है। गीगा के सह-संस्थापक ए. मणिदीप ने पोस्ट में इन सभी बातों का जिक्र किया है। एक यूजर ने उनकी पोस्ट पर कमेंट किया, 'यह भारत से निकले सबसे शानदार एआई स्टार्टअप्स में से एक होना चाहिए।'
ग्राहक गीगा में इसलिए दिलचस्पी ले रहे हैं क्योंकि इसके फायदे बहुत बड़े हैं। अगर एआई एजेंट हाई क्वालिटी और लगभग शून्य गलतियों के साथ बड़ी संख्या में सपोर्ट कॉल संभाल सकते हैं तो कंपनियों का खर्च बहुत कम हो जाएगा। यही वजह है कि डोरडैश जैसी कंपनियां पहले से ही गीगा का इस्तेमाल कर रही हैं। गीगा के निवेशक मानते हैं कि यह स्टार्टअप फॉर्च्यून 100 कंपनियों को भी अपना ग्राहक बना सकता है। यह एक क्लासिक सिलिकॉन वैली की कहानी है। लेकिन, इस बार इसकी जड़ें विजयवाड़ा और आईआईटी खड़गपुर से जुड़ी हैं।
सीधा नहीं था रास्ता
मणिदीप ने समझाया कि गीगा का रास्ता सीधा नहीं था। एलएलएम को फाइन-ट्यून करने की उनकी शुरुआती योजना एक बिजनेस के तौर पर सफल नहीं हो पाई। भले ही उन्होंने कई इंटरनल बेंचमार्क में टॉप किया हो। उन्होंने कस्टमर ऑपरेशंस की ओर रुख किया क्योंकि बड़े उद्यमों को वहीं एआई की सबसे ज्यादा जरूरत थी और जहां यह तकनीक तुरंत और मापने योग्य प्रभाव डाल सकती थी। उनकी महत्वाकांक्षा सिर्फ कॉल सेंटरों तक सीमित नहीं है। मणिदीप ने गीगा को फुल-स्केल एंटरप्राइज ऑपरेशंस प्लेटफॉर्म के रूप में बताया है। इस पर अगली ट्रिलियन-डॉलर की कंपनियां चल सकती हैं। क्लाइंट सपोर्ट तो बस शुरुआत है।
यह कहानी भारत के युवा टैलेंट की क्षमता को दर्शाती है, जो बड़े सपने देखने और उन्हें हकीकत में बदलने का जज्बा रखते हैं। वरुण और ईशा की कहानी उन लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा है जो लीक से हटकर कुछ करना चाहते हैं। उन्होंने साबित किया है कि सही सोच और कड़ी मेहनत से किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है और दुनिया में अपनी छाप छोड़ी जा सकती है। गीगा का सफर अभी शुरू हुआ है। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह एआई स्टार्टअप भविष्य में क्या नया करता है।
25 साल के वरुण की कहानी सिर्फ पैसों की नहीं है। यह उस बड़े फैसले की है जो उन्होंने लिया। दो साल पहले वरुण और मणिदीप अपने भविष्य के बारे में सोच रहे थे। मणिदीप को एक भारतीय हाई-फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग (HFT) फर्म से 1,50,000 डॉलर का ऑफर मिला था। वहीं, वरुण को स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी का ऑफर और एक अंतरराष्ट्रीय एचएफटी कंपनी से 525,000 डॉलर (करीब 5 करोड़ रुपये) की नौकरी का प्रस्ताव मिला था। लेकिन, उन्होंने इन सभी शानदार मौकों को छोड़ दिया। वरुण ने एक लिंक्डइन पोस्ट में बताया, 'हमने मशीन लर्निंग में चुनौतीपूर्ण समस्याओं को हल करने के अपने जुनून को पूरा करने के लिए उन सभी अवसरों को छोड़ दिया।'
इरादा था पक्का
यह कोई बहादुरी का काम नहीं था, बल्कि पक्का इरादा था। उन्हें लगा कि कंपनियों को कस्टम एआई की जरूरत है। वे एंटरप्राइज एलएलएम (लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स) को जीपीटी-4 जैसे मौजूदा मॉडल्स से ज्यादा तेज और सस्ता बना सकते हैं। वरुण ने तब कहा था, 'हमारे फाइन-ट्यून्ड मॉडल जीपीटी-4 एपीआई से 3 गुना तेज हैं। हम 70% सस्ते हैं और किसी खास काम में जीपीटी-4 से बेहतर प्रदर्शन करते हैं। इनमें स्वास्थ्य सेवा और बीमा शामिल हैं। फाइन-ट्यूनिंग के बाद हम जीपीटी-4+ प्रॉम्प्टिंग तकनीकों से बेहतर हैं।'
खासकर बीमा, स्वास्थ्य सेवा और कानून जैसे क्षेत्रों में डेटा प्राइवेसी की वजह से बने-बनाए एआई टूल्स का इस्तेमाल करना मुश्किल होता है। गीगा के मॉडल मल्टी-इंटेंट कन्वर्सेशन (एक साथ कई तरह की बातें समझना), मल्टीलिंगुअल कॉन्टेक्स्ट (अलग-अलग भाषाओं को समझना) और ब्रांड-लेवल डेटा प्राइवेसी (कंपनी की डेटा सुरक्षा) को संभालने के लिए बनाए गए हैं। ये वो खूबियां हैं जिनकी बड़े ग्राहक मांग करते हैं। वरुण ने इंटरव्यू में बताया कि मशीनें अब बारीकियों, आवाज के उतार-चढ़ाव और भावनाओं को समझ सकती हैं। यह सिर्फ एक और चैटबॉट नहीं है।
A big hat tip to Varun Vummadi from Vijayawada, AP. Just two years after IIT Kharagpur, he turned down a Stanford PhD to build a truly incredible product - and has now secured a Series-A from elite Silicon Valley investors. Andhra Pradesh is super proud of you, Varun! https://t.co/eKjlXaJUCV
— Lokesh Nara (@naralokesh) November 7, 2025
क्या है टारगेट?
गीगा का टारगेट बहुत सीधा है- ग्राहक सेवाओं को ऑटोमेट करना। अगर आपने कभी सपोर्ट चैट में एक ही बात बार-बार नए एजेंटों को बताते हुए घंटों बिताए हैं तो आप इस समस्या को समझते हैं। गीगा इस प्रक्रिया को वॉयस और चैट एआई एजेंटों से बदलना या बेहतर बनाना चाहता है। ये एजेंट एक साथ कई बातचीत संभाल सकते हैं, स्वाभाविक और अनुकूल आवाज में बात कर सकते हैं, कंपनी के वर्कफ्लो को समझ सकते हैं, बड़े सिस्टम में इंटीग्रेट हो सकते हैं और कई भाषाओं का समर्थन कर सकते हैं।
कंपनी तीन बड़ी इंजीनियरिंग समस्याओं को हल करने की कोशिश कर रही है। इनमें एआई की ओर से गलत जानकारी देने (हैल्यूसिनेशंस) को लगभग शून्य करना, हर दिन करोड़ों कॉल को संभालने की क्षमता विकसित करना और 400 मिलीसेकंड से कम समय में वॉयस रिस्पॉन्स देना शामिल है।
वरुण और मणिदीप ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर जो वीडियो शेयर किया है, उसमें एआई की आवाज 'Her' फिल्म की स्कारलेट जोहानसन जैसी लगती है। गीगा के सह-संस्थापक ए. मणिदीप ने पोस्ट में इन सभी बातों का जिक्र किया है। एक यूजर ने उनकी पोस्ट पर कमेंट किया, 'यह भारत से निकले सबसे शानदार एआई स्टार्टअप्स में से एक होना चाहिए।'
ग्राहक गीगा में इसलिए दिलचस्पी ले रहे हैं क्योंकि इसके फायदे बहुत बड़े हैं। अगर एआई एजेंट हाई क्वालिटी और लगभग शून्य गलतियों के साथ बड़ी संख्या में सपोर्ट कॉल संभाल सकते हैं तो कंपनियों का खर्च बहुत कम हो जाएगा। यही वजह है कि डोरडैश जैसी कंपनियां पहले से ही गीगा का इस्तेमाल कर रही हैं। गीगा के निवेशक मानते हैं कि यह स्टार्टअप फॉर्च्यून 100 कंपनियों को भी अपना ग्राहक बना सकता है। यह एक क्लासिक सिलिकॉन वैली की कहानी है। लेकिन, इस बार इसकी जड़ें विजयवाड़ा और आईआईटी खड़गपुर से जुड़ी हैं।
सीधा नहीं था रास्ता
मणिदीप ने समझाया कि गीगा का रास्ता सीधा नहीं था। एलएलएम को फाइन-ट्यून करने की उनकी शुरुआती योजना एक बिजनेस के तौर पर सफल नहीं हो पाई। भले ही उन्होंने कई इंटरनल बेंचमार्क में टॉप किया हो। उन्होंने कस्टमर ऑपरेशंस की ओर रुख किया क्योंकि बड़े उद्यमों को वहीं एआई की सबसे ज्यादा जरूरत थी और जहां यह तकनीक तुरंत और मापने योग्य प्रभाव डाल सकती थी। उनकी महत्वाकांक्षा सिर्फ कॉल सेंटरों तक सीमित नहीं है। मणिदीप ने गीगा को फुल-स्केल एंटरप्राइज ऑपरेशंस प्लेटफॉर्म के रूप में बताया है। इस पर अगली ट्रिलियन-डॉलर की कंपनियां चल सकती हैं। क्लाइंट सपोर्ट तो बस शुरुआत है।
यह कहानी भारत के युवा टैलेंट की क्षमता को दर्शाती है, जो बड़े सपने देखने और उन्हें हकीकत में बदलने का जज्बा रखते हैं। वरुण और ईशा की कहानी उन लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा है जो लीक से हटकर कुछ करना चाहते हैं। उन्होंने साबित किया है कि सही सोच और कड़ी मेहनत से किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है और दुनिया में अपनी छाप छोड़ी जा सकती है। गीगा का सफर अभी शुरू हुआ है। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह एआई स्टार्टअप भविष्य में क्या नया करता है।
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