नई दिल्ली : सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर गुरुवार को कई बड़े खुलासे किए हैं। उन्होंने कहा कि यह ऑपरेशन सेना के तीनों अंगों की अद्वितीय क्षमता, सूझबूझ और समन्वय का परिणाम है। झारखंड राजभवन में स्कूली बच्चों से संवाद के दौरान उन्होंने बताया कि कैसे इस ऑपरेशन को अंजाम दिया गया है और इसकी टाइमिंग तय की गई।
जनरल अनिल चौहान ने बताया कि सात मई को रात एक से डेढ़ बजे के बीच पाकिस्तान के नौ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाने का निर्णय काफी सोच-समझकर लिया गया था। ऐसा दो कारणों से था, क्योंकि हमें अपनी सेना और संसाधनों पर भरोसा था कि हम रात में भी इमेज ले सकते हैं और दूरी ऑपरेशन के लिए यह समय इसलिए चुना गया ताकि सामान्य नागरिकों की जान-माल को नुकसान न पहुंचे। उन्होंने बताया कि हमारे ऑपरेशन के लिए सबसे बेहतर समय 5.30 से 6 बजे का होता लेकिन वह समय पहली अजान या नमाज का होता है, उस समय बहावलपुर या अन्य जगहों पर चहल-पहल शुरू हो गई होती, जिससे उन्हें नुकसान हो सकता था।
क्यों चुनी गई 7 मई की तारीख?
तारीख के चुनाव को लेकर उन्होंने बताया कि इसके लिए 7 मई और उसके आगे की तारीखें चुनने के पीछे की वजह यह थी कि इन तारीखों में मौसम पूर्वानुमान हमारे अनुकूल था। आसमान साफ था और इस वजह से हमें अपने लक्ष्य को भेदने में आसानी हुई।
ऑपरेशन सिंदूर में नेवी भी थी शामिल
जनरल अनिल चौहान ने कहा, “इस ऑपरेशन में सेना के तीनों अंग नेवी, आर्मी और एयरफोर्स शामिल थे। नेवी के पास S-400 और S120 हथियारों से लैस थी। इस ऑपरेशन में नेवी के मारकोस कमांडोज को जम्मू-कश्मीर और पंजाब में मोर्चे पर तैनात किया गया था। उन्होंने इस ऑपरेशन में अपने हथियारों का सटीकता से इस्तेमाल किया। एयरफोर्स ने सटीक लक्ष्य साधा और हथियारों ने एक्यूरेसी के साथ काम किया। इस सफलता के पीछे गहन तैयारी, दूरी, एंगल और साइंस की गहरी समझ रही। आर्मी और नेवी ने जमीन से लेकर समुद्र तक मोर्चा संभाल रखा था।
सीडीएस चौहान ने कहा कि इस बार हमने सिर्फ कार्रवाई नहीं की, बल्कि इसकी तस्वीरों और वीडियो के साथ दुश्मनों को पहुंचाए गए नुकसान का पुख्ता साक्ष्य भी इकट्ठा किया। बालाकोट ऑपरेशन में हम ऐसा नहीं कर पाए थे।
ड्रोन टेक्नोलॉजी का किया गया इस्तेमाल
उन्होंने कहा कि हमने बालाकोट और उरी में जो ऑपरेशन किया था, ऑपरेशन सिंदूर में उससे अलग रणनीति अपनाई। दरअसल, हर सैन्य कार्रवाई में रणनीति नई होनी चाहिए। इस बार ड्रोन टेक्नोलॉजी का भी सफल इस्तेमाल हुआ। पाकिस्तान के बहावलपुर से 120 किलोमीटर दूर लक्ष्य पर निशाना साधना तकनीकी और पेशेवर दक्षता का परिचय है।
सीडीएस अनिल चौहान ने कहा, कुछ टारगेट ऐसे थे जिन्हें हम ज्यादा दूरी से सटीक निशाना नहीं लगा सकते थे, ऐसी स्थिति में भारतीय वायुसेना को इस जगहों पर हमले की जिम्मेदारी सौंपी गई। वायुसेना ने अपने लक्ष्यों को सटिकता के साथ अंजाम दिया।
जनरल अनिल चौहान ने बताया कि सात मई को रात एक से डेढ़ बजे के बीच पाकिस्तान के नौ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाने का निर्णय काफी सोच-समझकर लिया गया था। ऐसा दो कारणों से था, क्योंकि हमें अपनी सेना और संसाधनों पर भरोसा था कि हम रात में भी इमेज ले सकते हैं और दूरी ऑपरेशन के लिए यह समय इसलिए चुना गया ताकि सामान्य नागरिकों की जान-माल को नुकसान न पहुंचे। उन्होंने बताया कि हमारे ऑपरेशन के लिए सबसे बेहतर समय 5.30 से 6 बजे का होता लेकिन वह समय पहली अजान या नमाज का होता है, उस समय बहावलपुर या अन्य जगहों पर चहल-पहल शुरू हो गई होती, जिससे उन्हें नुकसान हो सकता था।
क्यों चुनी गई 7 मई की तारीख?
तारीख के चुनाव को लेकर उन्होंने बताया कि इसके लिए 7 मई और उसके आगे की तारीखें चुनने के पीछे की वजह यह थी कि इन तारीखों में मौसम पूर्वानुमान हमारे अनुकूल था। आसमान साफ था और इस वजह से हमें अपने लक्ष्य को भेदने में आसानी हुई।
ऑपरेशन सिंदूर में नेवी भी थी शामिल
जनरल अनिल चौहान ने कहा, “इस ऑपरेशन में सेना के तीनों अंग नेवी, आर्मी और एयरफोर्स शामिल थे। नेवी के पास S-400 और S120 हथियारों से लैस थी। इस ऑपरेशन में नेवी के मारकोस कमांडोज को जम्मू-कश्मीर और पंजाब में मोर्चे पर तैनात किया गया था। उन्होंने इस ऑपरेशन में अपने हथियारों का सटीकता से इस्तेमाल किया। एयरफोर्स ने सटीक लक्ष्य साधा और हथियारों ने एक्यूरेसी के साथ काम किया। इस सफलता के पीछे गहन तैयारी, दूरी, एंगल और साइंस की गहरी समझ रही। आर्मी और नेवी ने जमीन से लेकर समुद्र तक मोर्चा संभाल रखा था।
#WATCH | Ranchi, Jharkhand: CDS Gen Anil Chauhan says, "... On the 7th (of May), the terrorist targets we had chosen, we struck them between 1:00 and 1:30 at night… Why did we strike at 1:30 at night? That is the darkest time, it would be the most difficult to get satellite… pic.twitter.com/Rxtuubk8Kg
— ANI (@ANI) September 18, 2025
सीडीएस चौहान ने कहा कि इस बार हमने सिर्फ कार्रवाई नहीं की, बल्कि इसकी तस्वीरों और वीडियो के साथ दुश्मनों को पहुंचाए गए नुकसान का पुख्ता साक्ष्य भी इकट्ठा किया। बालाकोट ऑपरेशन में हम ऐसा नहीं कर पाए थे।
ड्रोन टेक्नोलॉजी का किया गया इस्तेमाल
उन्होंने कहा कि हमने बालाकोट और उरी में जो ऑपरेशन किया था, ऑपरेशन सिंदूर में उससे अलग रणनीति अपनाई। दरअसल, हर सैन्य कार्रवाई में रणनीति नई होनी चाहिए। इस बार ड्रोन टेक्नोलॉजी का भी सफल इस्तेमाल हुआ। पाकिस्तान के बहावलपुर से 120 किलोमीटर दूर लक्ष्य पर निशाना साधना तकनीकी और पेशेवर दक्षता का परिचय है।
सीडीएस अनिल चौहान ने कहा, कुछ टारगेट ऐसे थे जिन्हें हम ज्यादा दूरी से सटीक निशाना नहीं लगा सकते थे, ऐसी स्थिति में भारतीय वायुसेना को इस जगहों पर हमले की जिम्मेदारी सौंपी गई। वायुसेना ने अपने लक्ष्यों को सटिकता के साथ अंजाम दिया।
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