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छोटा-सा प्रोजेक्टर कैसे दिखा देता बड़े साइज में पिक्चर, समझें क्या है पूरा साइंस

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How Projector Works : आजकल बहुत से घरों में टीवी की जगह प्रोजेक्टर का इस्तेमाल होने लगा है। यह कम जगह घेरता है, टीवी के मुकाबले सस्ता आता है। आप चाहें तो इसे अपने साथ दूसरे कमरे या दूसरी जगह तक भी कैरी करके ले जा सकते हैं। आजकल कुछ प्रोजेक्टर तो इतने छोटे आने लगे हैं कि एक जेब में समा जाएं। फिर भी दीवार पर 100 इंच तक की बड़ी पिक्चर दिखा देता है। ये कोई जादू नहीं, बल्कि साइंस का कमाल है। प्रोजेक्टर का साइज छोटा होने के बावजूद इमेज को बड़ा करने के पीछे लाइट, लेंस और टेक्नोलॉजी का खेल है। चलिए, इसे आसान भाषा में समझते हैं कि प्रोजेक्टर में क्या साइंस है?


प्रोजेक्टर क्या है और कैसे काम करता है प्रोजेक्टर एक छोटा डिवाइस है जो लाइट की मदद से इमेज या वीडियो को दीवार या स्क्रीन पर दिखाता है। अंदर एक लाइट सोर्स होता है, जो इमेज बनाता है और फिर लेंस उसे बड़ा करके प्रोजेक्ट करता है। जैसे टॉर्च की लाइट दूर तक जाती है, वैसे ही प्रोजेक्टर की लाइट इमेज को फैलाती है। लेकिन सिर्फ लाइट से नहीं, इसमें डिजिटल चिप्स भी काम करती हैं।


लाइट सोर्स का रोल हर प्रोजेक्टर में लाइट का सोर्स बहुत जरूरी है। पहले हेलोजन बल्ब यूज होते थे, अब LED या लेजर लाइट ज्यादा चलन में है। ये लाइट बहुत ब्राइट होती है, 2000 से 5000 लुमेंस तक होती है। छोटा प्रोजेक्टर होने के बावजूद लाइट इतनी पावरफुल होती है कि अंधेरे में साफ पिक्चर दिखती है। लाइट इमेज चिप पर पड़ती है, फिर लेंस से बाहर निकलती है।



इमेज कैसे बनती है प्रोजेक्टर के अंदर DLP, LCD या LCoS जैसी चिप्स होती हैं। DLP में छोटे-छोटे मिरर्स होते हैं जो लाइट को रिफ्लेक्ट करते हैं। LCD में लिक्विड क्रिस्टल पिक्सल्स को कंट्रोल करते हैं। ये चिप्स इनपुट सिग्नल को समझकर कलर और शेप बनाती हैं। छोटी चिप पर लाखों पिक्सल्स होते हैं, जो मिलकर इमेज तैयार करते हैं। प्रोजेक्टर का लेंस ही इमेज को बड़ा करने का मुख्य टूल है। ये लेंस लाइट को फोकस करता है और फैलाता है। थ्रो रेशियो नाम की चीज तय करती है कि कितनी दूरी से कितना बड़ा इमेज बनेगा।

मिरर और ऑप्टिक्स का खेल कई मिनी प्रोजेक्टर में मिरर्स यूज होते हैं जो लाइट को मोड़ते हैं। इससे डिवाइस का साइज कम रहता है, लेकिन इमेज दूर तक जाती है। रिफ्लेक्शन और रिफ्रैक्शन के सिद्धांत से लाइट का पाथ कंट्रोल होता है। ये ऑप्टिक्स सिस्टम छोटे स्पेस में बड़ा प्रोजेक्शन पॉसिबल बनाता है। छोटा प्रोजेक्टर होने पर भी 4K रिजॉल्यूशन दे सकता है। पिक्सल्स की संख्या तय करती है कि इमेज कितनी डिटेल्ड होगी। 1080p में 20 लाख पिक्सल्स होते हैं, जो लेंस से बड़ा होकर भी साफ दिखते हैं।


जितनी डिस्टेंस ज्यादा, स्क्रीन साइज उतनी बड़ी प्रोजेक्टर को दीवार से जितनी दूर रखो, इमेज उतनी बड़ी बनेगी। 3 मीटर दूरी पर 120 इंच तक इमेज आसानी से बन जाती है। जूम लेंस से दूरी कम करके भी साइज एडजस्ट कर सकते हैं। छोटे प्रोजेक्टर में ऑटो कीस्टोन करेक्शन होता है, जो एंगल गलत होने पर भी इमेज सही रखता है। आजकल पॉकेट प्रोजेक्टर बैटरी से चलते हैं और वाई-फाई से कनेक्ट होते हैं। इनका वजन 300 ग्राम तक होता है। फिर भी 100 इंच तक प्रोजेक्शन देते हैं क्योंकि लेजर लाइट और मिनी लेंस का कॉम्बिनेशन यूज होता है। ये होम थिएटर को पोर्टेबल बनाते हैं।
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