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जीवन का असली धन जो जीवन ही नहीं मृत्यु के बाद भी काम आता है

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समय का प्रवाह और मृत्यु की अनिवार्यता हर सांसारिक वस्तु को हमसे छीन लेती है, इसलिए इन उपलब्धियों में जीवन का अंतिम ध्येय खोजना आत्मा के साथ छल करने के समान है। मानव जीवन का वास्तविक उद्देश्य केवल धन, पद, वैभव या सांसारिक उपलब्धियां एकत्र करना नहीं हैं, क्योंकि मृत्यु सब कुछ छीन लेती है। सच्चा ध्येय वही है, जो आत्मा के साथ स्थायी रहे और मृत्यु के पार भी उपयोगी सिद्ध हो। जो वस्तुएं अंततः साथ नहीं जातीं, उन्हें बटोरने में समय नष्ट करना व्यर्थ है। मनुष्य दिन-रात परिश्रम करता है, धन कमाता है, प्रतिष्ठा अर्जित करता है, पद और ऐश्वर्य की लालसा रखता है, किंतु यह सब अस्थायी है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने इसी सत्य को सहज शब्दों में कहा है,



अरब खरब लो संपदा, उदय अस्त लो राज। जो तुलसी निज मरण है, आवे कौन काज।।

अरबों-खरबों की संपत्ति, अथवा दिन-रात बदलने वाले राज्य भी मृत्यु के समय किसी काम नहीं आते। एक नाविक यात्रियों को नदी पार करवा रहा था। नाव में विद्वान और सफल लोग बैठे थे, कोई संगीतकार, कोई उद्योगपति, कोई राजनेता और कोई वैज्ञानिक। बातचीत में जब नाविक ने कहा कि वह केवल भगवान का स्मरण करता है और नाव चलाकर परिवार चलाता है, तो सबने उसका उपहास किया। लेकिन कुछ ही देर में नदी में तूफ़ान उठा। नाव डगमगाने लगी और डूबने की स्थिति बन गई। नाविक ने कहा, जो तैरना जानते हैं, वही बच सकते हैं। परंतु आश्चर्य यह था कि उन शिक्षित, प्रसिद्ध और धनी लोगों में से कोई तैरना नहीं जानता था, वे सभी डूब गए। नाविक ने छलांग लगाई और तैरकर किनारे पहुंच गया।




यह वृतांत एक सत्यता को लिए हुए है कि व्यक्ति संसार की अनेक उपलब्धि प्राप्त कर लेता है, लेकिन भवसागर को पार करने की कला अर्थात् जीवन जीने की कला वह सीख नहीं पाता, जिससे उसका जीवन अधूरा रहता है। इसलिए ज्ञानीजनों ने कहा है कि जो वस्तुएं अंत में काम नहीं आती, उन्हें बटोरने से क्या लाभ। मानव जीवन का उद्देश्य सांसारिक मोह-माया में उलझना नहीं है, बल्कि आत्मा के उत्थान और परम सत्य की खोज करना है। संसार की अनेक कलाएं और उपलब्धियां उस समय निष्फल हो जाती हैं जब जीवन-मरण का प्रश्न सामने खड़ा होता है।

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