नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से लगाए गए टैरिफ का भविष्य अब अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के हाथों में है। महीनों की कानूनी लड़ाई और वैश्विक बाजारों में छाई अनिश्चितता के बाद सुप्रीम कोर्ट के जज इस बात पर सुनवाई कर रहे हैं कि क्या ट्रंप ने आयात पर इतने बड़े टैक्स लगाकर अपनी हद पार कर दी थी। भारत समेत दुनिया के कई देश इस फैसले पर नजर रखे हुए हैं। क्योंकि इसका असर आम लोगों से लेकर अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पर पड़ने वाला है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चेतावनी दी है कि अगर सुप्रीम कोर्ट उनके द्वारा इस साल लगभग हर देश पर लगाए गए टैरिफ को रद्द कर देता है, तो अमेरिका 'रक्षाहीन' हो जाएगा और संभवतः 'लगभग तीसरे दर्जे के देश की स्थिति' में आ जाएगा। बड़ा सवाल यह है कि अगर सुप्रीम कोर्ट भी निचली अदालत की तरह यह फैसला ट्रंप के टैरिफ के खिलाफ देता है तो अमेरिकी राष्ट्रपति के पास क्या विकल्प रहेगा।
क्या हैं ट्रंप के पास रास्ते?बुधवार को हुई मौखिक दलीलों के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जजों ने राष्ट्रपति के टैरिफ लगाने के व्यापक अधिकार के दावों पर संदेह जताया। अगर कोर्ट उनके खिलाफ फैसला सुनाता है तब भी ट्रंप के पास आयात पर आक्रामक तरीके से टैक्स लगाने के कई रास्ते खुले रहेंगे। वे अपने पहले कार्यकाल में इस्तेमाल किए गए टैरिफ शक्तियों का फिर से उपयोग कर सकते हैं और महामंदी के समय से चले आ रहे एक अधिकार का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय की व्यापार कानून की प्रोफेसर कैथलीन क्लॉसन कहती हैं कि यहां से टैरिफ खत्म होने का कोई रास्ता दिखना मुश्किल है। उन्होंने यकीन जताया कि ट्रंप अन्य नियमों का उपयोग करके वर्तमान टैरिफ को फिर से लागू कर सकते हैं।
काफी हद तक बढ़ाया टैरिफटैरिफ ट्रंप की विदेश नीति का एक मुख्य आधार बन गए हैं। उन्होंने अधिकांश देशों पर 10 फीसदी या इससे ज्यादा रेसिप्रोकल टैरिफ लगाए गए हैं। उन्होंने अमेरिका के लंबे समय से चले आ रहे व्यापार घाटे को राष्ट्रीय आपातकाल घोषित करके इसे उचित ठहराया है। येल विश्वविद्यालय के बजट लैब के अनुसार, जनवरी में जब ट्रंप व्हाइट हाउस लौटे थे, तब औसत अमेरिकी टैरिफ 2.5% था, जो अब बढ़कर 17.9% हो गया है। यह साल 1934 के बाद सबसे अधिक है।
कांग्रेस के पास अधिकारटैरिफ लगाने का फैसला ट्रंप ने अकेले ही लिया है। जबकि अमेरिकी संविधान टैक्स और टैरिफ लगाने की शक्ति कांग्रेस को देता है। पहले निचली अदालतों ने यह फैसला सुनाया था कि ट्रंप ने इन व्यापार शुल्कों को तय करने में अपनी सीमा पार कर दी थी। अब देश की सबसे बड़ी अदालत यह तय करेगी कि क्या उन फैसलों को बरकरार रखा जाएगा। इस मामले पर फैसला किसी भी समय यानी अब से लेकर जुलाई तक आने की उम्मीद है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चेतावनी दी है कि अगर सुप्रीम कोर्ट उनके द्वारा इस साल लगभग हर देश पर लगाए गए टैरिफ को रद्द कर देता है, तो अमेरिका 'रक्षाहीन' हो जाएगा और संभवतः 'लगभग तीसरे दर्जे के देश की स्थिति' में आ जाएगा। बड़ा सवाल यह है कि अगर सुप्रीम कोर्ट भी निचली अदालत की तरह यह फैसला ट्रंप के टैरिफ के खिलाफ देता है तो अमेरिकी राष्ट्रपति के पास क्या विकल्प रहेगा।
क्या हैं ट्रंप के पास रास्ते?बुधवार को हुई मौखिक दलीलों के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जजों ने राष्ट्रपति के टैरिफ लगाने के व्यापक अधिकार के दावों पर संदेह जताया। अगर कोर्ट उनके खिलाफ फैसला सुनाता है तब भी ट्रंप के पास आयात पर आक्रामक तरीके से टैक्स लगाने के कई रास्ते खुले रहेंगे। वे अपने पहले कार्यकाल में इस्तेमाल किए गए टैरिफ शक्तियों का फिर से उपयोग कर सकते हैं और महामंदी के समय से चले आ रहे एक अधिकार का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय की व्यापार कानून की प्रोफेसर कैथलीन क्लॉसन कहती हैं कि यहां से टैरिफ खत्म होने का कोई रास्ता दिखना मुश्किल है। उन्होंने यकीन जताया कि ट्रंप अन्य नियमों का उपयोग करके वर्तमान टैरिफ को फिर से लागू कर सकते हैं।
काफी हद तक बढ़ाया टैरिफटैरिफ ट्रंप की विदेश नीति का एक मुख्य आधार बन गए हैं। उन्होंने अधिकांश देशों पर 10 फीसदी या इससे ज्यादा रेसिप्रोकल टैरिफ लगाए गए हैं। उन्होंने अमेरिका के लंबे समय से चले आ रहे व्यापार घाटे को राष्ट्रीय आपातकाल घोषित करके इसे उचित ठहराया है। येल विश्वविद्यालय के बजट लैब के अनुसार, जनवरी में जब ट्रंप व्हाइट हाउस लौटे थे, तब औसत अमेरिकी टैरिफ 2.5% था, जो अब बढ़कर 17.9% हो गया है। यह साल 1934 के बाद सबसे अधिक है।
कांग्रेस के पास अधिकारटैरिफ लगाने का फैसला ट्रंप ने अकेले ही लिया है। जबकि अमेरिकी संविधान टैक्स और टैरिफ लगाने की शक्ति कांग्रेस को देता है। पहले निचली अदालतों ने यह फैसला सुनाया था कि ट्रंप ने इन व्यापार शुल्कों को तय करने में अपनी सीमा पार कर दी थी। अब देश की सबसे बड़ी अदालत यह तय करेगी कि क्या उन फैसलों को बरकरार रखा जाएगा। इस मामले पर फैसला किसी भी समय यानी अब से लेकर जुलाई तक आने की उम्मीद है।
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