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सऊदी अरब, यूएई, चीन... पाकिस्तान के सबसे बड़े मददगारों पर क्या भारत के रुतबे का पड़ेगा असर?

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नई दिल्‍ली: पहलगाम हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच टेंशन है। पूरे देश में पाकिस्‍तान के खिलाफ सख्त ऐक्‍शन की मांग तेज हो गई है। सऊदी अरब, यूएई और चीन पाकिस्‍तान के सबसे बड़े फाइनेंसर्स में शामिल हैं। ये आतंक की फैक्‍ट्री बन चुके पाकिस्‍तान को जमकर पैसा देते हैं। भारत तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है। इन देशों के साथ उसके व्यापारिक और निवेश संबंध लगातार मजबूत हो रहे हैं। अमेरिका और रूस के साथ भी भारत के रिश्‍ते पहले से कहीं ज्‍यादा मजबूत हैं। ऐसे में भारत के बढ़ते रुतबे का पाकिस्तान के सबसे बड़े फाइनेंसर्स पर असर पड़ना लाजिमी है। अगर दोनों देशों के बीच जंग होती है तो भारत के इसी रुतबे के कारण पाकिस्तान के पारंपरिक फाइनेंसर्स के लिए अब पहले की तरह अंधा समर्थन देना मुश्किल होगा। वे अपने आर्थिक और रणनीतिक हितों का आकलन जरूर करेंगे। फिर उसी के अनुसार प्रतिक्रिया देंगे। भारत-पाकिस्‍तान के बीच बढ़े तनाव के बाद जंग की आशंका से कोई भी इनकार नहीं कर सकता है। ऐसे में सभी तरह के समीकरणों का आकलन जरूरी है। पहलगाम हमले की पूरी दुनिया ने एक सुर में निंदा की है। भारत से जुड़े हैं ज्‍यादा आर्थि‍क ह‍ित सऊदी अरब और यूएई भारत के लिए ऊर्जा के महत्वपूर्ण सप्‍लायर हैं और बड़े निवेशक भी हैं। चीन भी भारत का महत्वपूर्ण व्यापारिक भागीदार है। भारत का बढ़ता आर्थिक प्रभाव इन देशों को पाकिस्तान की तुलना में उसके साथ अपने आर्थिक हितों को प्राथमिकता देता है। सऊदी अरब और संयुक्‍त अरब अमीरात (यूएई) दोनों देश ऐतिहासिक रूप से पाकिस्तान के करीबी रहे हैं। लेकिन, हाल के वर्षों में भारत के साथ उनके संबंध काफी मजबूत हुए हैं। युद्ध की स्थिति में वे मुमकिन है कि तटस्थ रुख अपना सकते हैं या शांति बनाए रखने की अपील कर सकते हैं। उनकी सबसे बड़ी चिंता तेल की सप्‍लाई और अपने निवेश की सुरक्षा होगी। ये उन्हें किसी भी ऐसे कदम से दूर रख सकती है जिससे भारत के साथ उनके आर्थिक संबंध खराब हों।सऊदी अरब और यूएई दोनों ही आतंकवाद के खिलाफ हैं। उन्होंने इस मुद्दे पर भारत के साथ सहयोग किया है। पाकिस्तान की ओर से आतंकवाद को समर्थन देने के इतिहास को देखते हुए, वे भारत के रुख को अधिक सहानुभूति से देख सकते हैं। चीन के ल‍िए भी खुलकर आना होगा मुश्‍क‍िल चीन पाकिस्तान का 'ऑल-वेदर फ्रेंड' रहा है। युद्ध की स्थिति में वह कूटनीतिक और कुछ हद तक सैन्य समर्थन भी दे सकता है।हालांकि, चीन अपनी सीमा सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता को भी प्राथमिकता देगा। वह ऐसे किसी भी संघर्ष को बढ़ावा देने से बचेगा जो व्यापक क्षेत्रीय अस्थिरता का कारण बन सकता है।भारत एक बड़ा बाजार है और चीन के साथ उसका व्यापारिक संबंध महत्वपूर्ण है। युद्ध की स्थिति में भारत के खिलाफ खुलकर आने से चीन को आर्थिक नुकसान हो सकता है। इसलिए, चीन का समर्थन सावधानीपूर्वक कैलिब्रेट किया जा सकता है। साथ ही चीन अमेरिका के साथ व्‍यापार युद्ध में फंसा है। ऐसे में वह कतई नहीं चाहेगा कि वह किसी का पक्ष लेकर पार्टी बने। पाकिस्तान को आर्थिक रूप से कमजोर किया जा सकता है। उसके पास सिर्फ 10.5 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है। जबकि भारत के पास 678 अरब डॉलर है। एक तरीका यह है कि सऊदी अरब, यूएई और चीन से बात की जाए। चीन ने हाल ही में पाकिस्तान को 5.51 अरब डॉलर का कर्ज दिया है। भारत इन देशों को मना सकता है कि वे आगे पैसा न दें, क्योंकि इसका इस्तेमाल आतंकवाद के लिए किया जाता है।
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