शिवसेना के संस्थापक और महाराष्ट्र की राजनीतिक दुनिया के अटल नेता बालासाहेब ठाकरे के पार्थिव शरीर को मातोश्री में दो दिनों तक रखा गया, जहाँ उनके अनुयायियों और नेताओं ने श्रद्धांजलि अर्पित की। इस दौरान राजनीतिक हलकों में खासा हलचल रही, खासकर उद्धव ठाकरे और शिवसेना के शिंदे गुट के बीच आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति ने नया रूप ले लिया।
बालासाहेब ठाकरे की पुण्यतिथि पर मातोश्री में श्रद्धांजलि समारोह आयोजित किया गया, जिसमें महाराष्ट्र के राजनीतिक दिग्गज, पार्टी कार्यकर्ता, और आमजन शामिल हुए। मातोश्री में उनकी याद में विशेष प्रार्थनाएं हुईं, और एक भावपूर्ण माहौल छाया रहा। बालासाहेब की छवि आज भी महाराष्ट्र की राजनीति और समाज के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।
लेकिन इस अवसर पर उद्धव ठाकरे और शिंदे गुट के बीच तनाव और आरोप-प्रत्यारोप भी जोर पकड़े। दोनों गुटों ने एक-दूसरे पर पार्टी की विरासत को नुकसान पहुंचाने और बालासाहेब की याद को राजनीति का हथियार बनाने का आरोप लगाया। उद्धव ठाकरे ने कहा कि उनकी पार्टी बालासाहेब की विचारधारा और राजनीति के मूल सिद्धांतों का पालन कर रही है, जबकि शिंदे गुट ने दावा किया कि वे शिवसेना को वास्तविक दिशा देने का कार्य कर रहे हैं।
शिंदे गुट के नेताओं ने उद्धव ठाकरे पर पार्टी के अंदरूनी मामलों में गलत हस्तक्षेप और व्यक्तिगत हितों को प्राथमिकता देने का आरोप लगाया। वहीं उद्धव गुट ने शिंदे गुट को पार्टी को विभाजित करने और बालासाहेब की छवि को धूमिल करने की कोशिश का दोषी ठहराया। इस आरोप-प्रत्यारोप से शिवसेना के अंदरूनी विवाद फिर से सार्वजनिक हो गए हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, बालासाहेब ठाकरे की विरासत पर चल रही इस लड़ाई से शिवसेना की राजनीतिक ताकत प्रभावित हो सकती है। पार्टी के दोनों गुटों में तालमेल की कमी और एकजुटता के अभाव ने जनता के बीच असंतोष भी बढ़ा दिया है। ऐसे में शिवसेना के सामने आने वाले चुनाव और राजनीतिक मोर्चे पर चुनौतियां बढ़ती नजर आ रही हैं।
महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है, और बालासाहेब की छवि पार्टी की पहचान से जुड़ी है। इसलिए, दोनों गुटों के बीच चल रहे विवाद को जल्द से जल्द खत्म करना पार्टी के लिए आवश्यक है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि शिवसेना की एकता ही राज्य की राजनीति में उनकी प्रभावी हिस्सेदारी सुनिश्चित कर सकती है।
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