सांगली (महाराष्ट्र), 31 मई . अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जन्मजयंती के अवसर पर उनकी स्मृति में महाराष्ट्र के सांगली के चित्रकार आदम अली मुजावर ने 400 किलोग्राम रंग और पेपर के इस्तेमाल से एक ऐसी रंगोली बनाई है, जिसके रिकॉर्ड बुक में दर्ज होने की उन्हें उम्मीद है.
सांगली के चित्रकार आदम अली मुजावर ने बताया कि वह रंगोली कलाकार के साथ एक शिक्षक भी हैं. उन्होंने अहिल्या देवी होलकर की रंगोली बनाई है. इसे बनाने में 200 किलोग्राम रंग और 200 किलोग्राम पेपर का इस्तेमाल किया गया है. रंगोली 80 फीट लंबी और 60 फीट चौड़ी है. इसे बनाने में तीन दिन का समय लगा.
मुजावर ने बताया कि उन्होंने पहले भी बड़ी-बड़ी रंगोलियां बनाई हैं. कुल 26 विश्व रिकॉर्ड उनके नाम हैं और विभिन्न रिकॉर्ड बुकों में उन्हें जगह मिल चुकी है. उन्होंने उम्मीद जताई कि उनकी यह रंगोली भी रिकॉर्ड बुक में दर्ज होगी. रंगोली 31 मई से 4 जून तक प्रदर्शनी के लिए रखी गई है.
रंगोली में अहिल्याबाई होल्कर को घोड़े पर बैठे हुए एक योद्धा के रूप में दिखाया गया है. वह उजले रंग की साड़ी में दिख रही हैं, जिसका किनारा सुनहरे रंग का है. बाएं हाथ में उन्होंने घोड़े की लगाम पकड़ी हुई है और दाएं हाथ में तलवार है. रंगोली में उजले, नीले, पीले, हरे, गुलाबी और काले रंगों का इस्तेमाल किया गया है.
अहिल्याबाई होल्कर का नाम भारतीय इतिहास में एक वीरांगना के रूप में दर्ज है. वह मालवा की रानी थीं. उनका जन्म 31 मई 1725 में महाराष्ट्र के अहमदनगर स्थित चौंडी गांव में हुआ था. उनके पिता मनोकजी शिंदे ग्राम पटेल थे. अहिल्याबाई धनगर समुदाय से ताल्लुक रखती थीं.
किसान परिवार में जन्मी अहिल्याबाई का विवाह मात्र आठ साल की उम्र में मालवा के शासक मल्हार राव होल्कर के बेटे खांडेराव होल्कर के साथ हुआ था. सन् 1754 में पति और 1766 में अपने ससुर के निधन के बाद उनके बेटे मालेराव का भी निधन हो गया. तब अहिल्याबाई ने मालवा की बागडोर संभाली थी. उन्होंने 1767 से लेकर 1795 तक मालवा की गद्दी संभाली.
एक महिला होकर उन्होंने उस दौर में शासन चलाया, जब स्त्रियों को राजनीतिक भागीदारी का अधिकार नहीं था. अपनी बुद्धिमत्ता, करुणा और नेतृत्व क्षमता से उन्होंने नारी सशक्तीकरण का जीवंत उदाहरण पेश किया. अहिल्याबाई ने राज्य को मजबूत करने के लिए अपने नेतृत्व में महिला सेना की स्थापना की. लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई को विस्तार देने का प्रयास किया. अपने शासन काल में उन्होंने काशी, गया, सोमनाथ, द्वारका, रामेश्वरम, बद्रीनाथ, केदारनाथ, अयोध्या, उज्जैन जैसे कई धार्मिक स्थलों पर मंदिरों और धर्मशालाओं का निर्माण कराया. उनका निधन 13 अगस्त 1795 को हुआ था.
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पीएके/एकेजे
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