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सर क्रीक क्या है और कहां है, जिसका ज़िक्र करते हुए राजनाथ सिंह ने पाकिस्तान को दी चेतावनी

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image Getty Images सर क्रीक पाकिस्तान के सिंध प्रांत और भारत के गुजरात राज्य के बीच स्थित 96 किलोमीटर लंबी दलदली ज़मीन है, जिस पर दोनों ही देशों के अपने-अपने दावे हैं.

भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दावा किया है कि पाकिस्तान सर क्रीक के नज़दीकी इलाकों में सैन्य ढांचे विकसित कर रहा है.

विजयादशमी के मौके पर गुरुवार को राजनाथ सिंह गुजरात के कच्छ में एक सैन्य अड्डे पर आयोजित शस्त्र पूजा में शामिल होने पहुंचे थे. यहां उन्होंने पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए कई बातें कही.

उन्होंने कहा, ''आज़ादी के 78 साल हो चुके हैं इसके बावजूद सर क्रीक क्षेत्र में सीमा विवाद को हवा दी जा रही है. भारत ने बातचीत के ज़रिए इस विवाद को सुलझाने की कई कोशिशें की हैं लेकिन पाकिस्तान की नीयत में ही खोट है, उसकी नीयत साफ़ नहीं हैं. पाकिस्तानी सेना ने जिस तरह से सर क्रीक से सटे इलाकों में अपनै सैन्य ढांचों का विस्तार किया है, वो उसकी मंशा को दर्शाता है.''

राजनाथ सिंह ने कहा कि अगर पाकिस्तान की ओर से इस क्षेत्र में किसी तरह के दुस्साहस की कोशिश की जाती है तो उसका इतना निर्णायक जवाब दिया जाएगा कि 'इतिहास और भूगोल दोनों बदल जाएंगे'.

लेकिन सर क्रीक क्षेत्र का सीमा विवाद है क्या? दोनों ही देशों के लिए ये इतना अहम क्यों है? इस विवाद को हल करने के लिए अब तक कौन से प्रयास हुए हैं और अगर पाकिस्तान वाकई यहां सैन्य ढांचे का विस्तार कर रहा है तो ये भारत के लिए कितनी चिंता की बात है. इन सारे ही अहम सवालों के जवाब जानने के लिए हमने कुछ एक्सपर्ट्स से बात की है.

क्या है सर क्रीक सीमा विवाद? image Getty Images सर क्रीक भारत और पाकिस्तान के बीच एक पतली और दलदली खाड़ी है, जो अरब सागर से जुड़ी है.

भारत और पाकिस्तान के बीच कई दशकों से कुछ सीमाई क्षेत्रों को लेकर विवाद चल रहा है. इनमें सबसे ज़्यादा चर्चा कश्मीर और लद्दाख के क्षेत्रों को लेकर होती रही है लेकिन एक और क्षेत्र है जिसके बंटवारे पर कई दशकों से तकरार जारी है.

ये क्षेत्र है सर क्रीक.

पाकिस्तान के सिंध प्रांत और भारत के गुजरात राज्य के बीच स्थित 96 किलोमीटर लंबी दलदली ज़मीन, जिस पर दोनों ही देशों के अपने-अपने दावे हैं.

इन दावों की बात करें इससे पहले क्रीक क्या होता है इसे समझ लेते हैं.

क्रीक का अर्थ होता है समुद्र में मौजूद एक संकरी सी खाड़ी.

तो सर क्रीक भी भारत और पाकिस्तान के बीच एक पतली और दलदली खाड़ी है, जो अरब सागर से जुड़ी है.

पहले इसका नाम बन गंगा था. फिर ब्रिटिशकाल में इसका नाम 'सर क्रीक' पड़ गया. ये हिस्सा भी तभी से यानी ब्रिटिश काल से विवादों के गिरफ़्त में है.

विवाद की वजह आसान भाषा में समझें, तो दोनों ही देश इस समुद्री सीमा को अलग तरह से देखते हैं.

भारत कहता है कि सीमा खाड़ी के बीच से तय होनी चाहिए, जबकि पाकिस्तान का कहना है कि सीमा उनके किनारे से मानी जाए, क्योंकि ब्रिटिश सरकार ने साल 1914 में इसे नॉन नैविगेबल (यानी जहां जहाज़ नहीं चल सकते) मानते हुए तय किया था.

साल 1914 में क्या तय हुआ था? image Getty Images

साल 1914 के संदर्भ से आप समझ गए होंगे कि ये विवाद कितना पुराना है.

इस दौर में सिंध (आज के पाकिस्तान का प्रांत) और कच्छ (भारतीय राज्य गुजरात का क्षेत्र) दोनों बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा हुआ करते थे. लेकिन दोनों ही सूबों के बीच सर क्रीक के क्षेत्र को लेकर विवाद चल रहा था.

तब तक इस क्षेत्र का सर्वे तक नहीं हुआ था.

साल 1913-14 के बीच सर्वे किए गए और बॉम्बे प्रेसीडेंसी ने एक प्रस्ताव जारी किया. इस प्रस्ताव में कहा गया कि सर क्रीक एक दलदली जगह है, यहां से जहाज़ नहीं गुज़र सकता इसलिए इसकी सीमा बीच से नहीं बल्कि किनारे यानी ईस्टर्न बैंक से तय होगी.

इसका परिणाम ये हुआ कि सर क्रीक का पूरा हिस्सा सिंध की तरफ़ चला गया.

आज़ादी के बाद पाकिस्तान इसी फै़सले के साथ आगे बढ़ना चाहता था, लेकिन भारत ने कहा कि सीमा तो खाड़ी के बीच यानी मिड चैनल से होनी चाहिए.

भारत ने इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय सीमा क़ानून और संयुक्त राष्ट्र की समुद्री क़ानून पर संधि यानी यूएनसीएलओएस के एक सिद्धांत का हवाला दिया.

ये सिद्धांत है थालवेग, इसमें कहा गया है कि अगर कोई नदी या खाड़ी दो देशों के बीच है, तो सीमा सामान्य रूप से उसके बीच से ही तय की जाएगी.

लेकिन पाकिस्तान का कहना है कि चूंकी ये नैविगेबल नहीं है, एक दलदली ज़मीन है इसलिए ये सिद्धांत इस पर लागू नहीं होगा.

जबकि भारत का पक्ष है कि यहां टाइड्स यानी ज्वार-भाटा आते जाते रहते हैं, इसलिए इस क्षेत्र का नेचर बदलता रहता है. ये केवल दलदली ज़मीन नहीं रह जाती, इससे जहाज़ भी गुज़र सकते हैं. तो किनारे से सीमा तय करने का कोई मतलब नहीं बनता.

क्यों अहम है ये इलाक़ा? image BBC

अगर सीमा बीच से मानी जाए तो भारत को समुद्र का बड़ा हिस्सा मिलेगा, जबकि किनारे से मानने पर पाकिस्तान को फ़ायदा होगा.

दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में राजनीतिक विज्ञान विभाग में प्रोफ़ेसर रेशमी काज़ी बताती हैं कि ये इलाक़ा आर्थिक, सामरिक और रणनीतिक रूप से बहुत अहम है.

इसके अलावा एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन यानी पानी या समुद्र की सतह पर मौजूद संसाधनों के अधिकार, कॉन्टिनेंटल शेल्फ़ यानी समुद्र के नीचे की ज़मीन और उसके ख़निज, तेल, गैस पर अधिकार के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है.

image BBC

उनके मुताबिक़ इस क्षेत्र को तेल और प्राकृतिक गैस से समृद्ध माना जाता है.

वह बताती हैं, ''कई बार हमने देखा है कि ये विवादित सीमा दोनों देशों के मछुआरों के लिए भी मुसीबत का सबब बन जाती है. साथ ही पाकिस्तान अपने लेफ़्ट बैंक ऑउटफॉल ड्रेन (एलबीओडी) प्रोजेक्ट के तहत सैलाइन और इंडस्ट्रियल वॉटर सर क्रीक में पंप कर देता है. इसका इकोलॉजिकल इम्पैक्ट तो है ही, ये इंडस वॉटर ट्रीटी का उल्लंघन भी है. इससे यहां दूषित पानी तो आ ही रहा है, कई बार बाढ़ की भी समस्या खड़ी हो जाती है. इसलिए ये इलाक़ा अहम हो जाता है.''

विवाद को सुलझाने की कभी कोशिश हुई? image Getty Images भारत और पाकिस्तान यूएनसीएलओएस के सदस्य होते हुए भी सर क्रीक को द्विपक्षीय मुद्दा बताते हैं और इस विवाद को किसी अंतरराष्ट्रीय अदालत में नहीं ले जाना चाहते.

भारत और पाकिस्तान दोनों ही संयुक्त राष्ट्र की समुद्री क़ानून पर संधि यानी यूएनसीएलओएस के सदस्य हैं.

इस संधि के तहत सभी देशों को अपने समुद्री विवाद 2009 तक सुलझा लेने थे, अन्यथा विवादित क्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय जल क्षेत्र घोषित कर दिए जाने की बात कही गई थी.

मगर भारत और पाकिस्तान यूएनसीएलओएस के सदस्य होते हुए भी सर क्रीक को द्विपक्षीय मुद्दा बताते हैं और इस विवाद को किसी अंतरराष्ट्रीय अदालत में नहीं ले जाना चाहते.

साल 2015 तक दोनों ही देशों के बीच इसके हल को लेकर कई दौर की बातचीत हो चुकी है. साल 1995, साल 2005 में हुई बातचीत से अच्छे संकेत भी मिले थे पर फिर मामला फंसा रह गया और अब तक किसी भी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सका है.

रेशमा काज़ी का कहना है, ''भारत सरकार का ये स्टैंड है कि आतंकवाद और बातचीत दोनों साथ-साथ नहीं हो सकते. ये बात बिल्कुल सही है लेकिन इन मसलों का हल डायलॉग के ज़रिए ही निकल सकता है इसलिए दोनों देशों को खुद ही हल निकालना होगा."

राजनाथ सिंह का बयान कितना अहम image Getty Images राजनाथ सिंह ने दावा किया है कि पाकिस्तान सर क्रीक के क्षेत्र में सैन्य ढांचे का विस्तार कर रहा है.

अब सवाल उठता है कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सर क्रीक के इलाक़े में पाकिस्तान के सैन्य ढांचे के विस्तार की जो बात कही है, वह कितनी अहम है?

इस सवाल के जवाब में रक्षा विशेषज्ञ राहुल बेदी कहते हैं कि राजनाथ सिंह का बयान बहुत असामान्य है क्योंकि सर क्रीक का मुद्दा अब प्रासंगिक नहीं रहा.

वो कहते हैं, ''नब्बे के दशक में सर क्रीक एक हॉट टॉपिक था लेकिन अब तो ये डेड टॉपिक है. राजनाथ सिंह ने क्यों इस समय ऐसा बयान दिया ये साफ़ तो नहीं लेकिन कहा जा सकता है कि ये पाकिस्तान को चेतावनी देने की कोशिश है कि भारत की नज़र इस मोर्चे पर भी बनी हुई है. भारत बार-बार कहता रहा है कि ऑपरेशन सिंदूर अभी जारी है इसलिए उसी से जोड़कर देखा जाना चाहिए.''

वहीं भारत के पूर्व राजनयिक महेश सचदेव ने समाचार एजेंसी आईएनएस से बात करते हुए कहा है, ''भारत इस क्षेत्र पर पाकिस्तान के दावे को ख़ारिज करता रहा है. हम अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का पालन करते हैं. हम अपने क्षेत्र को डिफ़ेंड करने के लिए यहां इंफ्रास्ट्रक्चर भी तैयार कर रहे हैं. इसलिए राजनाथ सिंह का यह बयान पाकिस्तान को यह संदेश देने की कोशिश है कि उसे कथित रूप से अमेरिका या सऊदी अरब से किसी भी तरह का समर्थन मिले, भारत इस तरह के दबाव को नहीं सहेगा और उसके पास पाकिस्तान के उकसावे का जवाब देने का अधिकार है.''

वहीं प्रोफ़ेसर रेशमी काज़ी का मानना है, ''अगर पाकिस्तान सर क्रीक के क्षेत्र में सैन्य विस्तार कर रहा है तो भारत को भी अपने एयर डिफेंस और रडार तकनीक को मज़बूत करना चाहिए क्योंकि ये सीमाई क्षेत्र है और आतंकवादी घुसपैठ का भी ख़तरा बना रहता है."

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