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वीडियो में जाने महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय की वैज्ञानिक सोच से बनी खगोलीय वेधशाला की कहानी, जिसे यूनेस्को ने दिया विश्व धरोहर का दर्जा

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भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल जंतर-मंतर, जयपुर आज भी विज्ञान और वास्तुकला का जीवंत उदाहरण है। यह केवल पत्थर और संगमरमर से बना स्थापत्य नहीं, बल्कि एक ऐसा खगोलीय वेधशाला (Observatory) है जिसने सदियों पहले ही समय, ग्रह-नक्षत्रों और खगोलीय घटनाओं की सटीक गणना करने की परंपरा को जन्म दिया। यही कारण है कि जंतर-मंतर न सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।

महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय की दूरदर्शिता

जंतर-मंतर का निर्माण 18वीं शताब्दी में जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने करवाया था। खगोल विज्ञान में गहरी रुचि रखने वाले इस राजपूत शासक ने महसूस किया कि केवल पारंपरिक यंत्रों से खगोलीय गणनाओं में सटीकता पाना संभव नहीं है। उन्होंने भारत ही नहीं बल्कि यूरोप और अरब देशों की खगोल शास्त्र संबंधी पुस्तकों का गहन अध्ययन किया और उसके बाद पांच जगहों पर जंतर-मंतर का निर्माण कराया। इनमें दिल्ली, उज्जैन, वाराणसी, मथुरा और जयपुर प्रमुख हैं। इनमें से जयपुर का जंतर-मंतर सबसे विशाल और सर्वाधिक संरक्षित है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण और खगोलीय यंत्र

जयपुर स्थित जंतर-मंतर में कुल 19 मुख्य खगोलीय यंत्र बने हुए हैं। इनका उद्देश्य सूर्य की स्थिति, ग्रहों की चाल, नक्षत्रों की दूरी, समय निर्धारण और ज्योतिषीय गणनाओं को सरल बनाना था। सबसे विशेष यंत्र सम्राट यंत्र है, जो सूर्य घड़ी (Sundial) की तरह काम करता है और मात्र 2 सेकंड के अंतराल तक का समय बता सकता है। इसी प्रकार जै प्रकट यंत्र, राम यंत्र, चक्र यंत्र, नारिवलय यंत्र और ध्रुव यंत्र भी खगोलीय गणनाओं के लिए बनाए गए थे।यहां के यंत्र न तो मशीनों पर आधारित हैं और न ही किसी धातु पर, बल्कि ये पूरी तरह से पत्थर और संगमरमर से निर्मित हैं। यही कारण है कि सैकड़ों साल बाद भी ये सटीकता से काम कर रहे हैं और खगोल विज्ञान के विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा बने हुए हैं।

वास्तुकला की अद्भुत मिसाल

जंतर-मंतर का निर्माण केवल खगोलीय जरूरतों के लिए नहीं, बल्कि वास्तुकला के सौंदर्य को ध्यान में रखकर भी किया गया था। हर यंत्र का आकार विशाल है ताकि गणना आसान और स्पष्ट हो सके। यहां की डिजाइनिंग इस बात का प्रमाण है कि उस दौर में भारतीय शिल्पकारों और गणितज्ञों के पास कितनी गहरी समझ थी। 18वीं सदी में इतनी सटीक गणनाओं के लिए इस स्तर की संरचना बनाना अपने आप में अद्भुत उपलब्धि है।

ज्योतिष और धार्मिक महत्व

जंतर-मंतर का इस्तेमाल केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि ज्योतिषीय और धार्मिक दृष्टि से भी किया जाता था। ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति जानकर त्योहारों, यज्ञों और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए शुभ मुहूर्त का निर्धारण यहीं से होता था। यही कारण है कि जयपुर दरबार में इसे राजकीय धरोहर का दर्जा प्राप्त था और राजपूत शासकों द्वारा इसे विशेष महत्व दिया जाता था।

आज का जंतर-मंतर: विश्व धरोहर

वर्ष 2010 में यूनेस्को ने जंतर-मंतर, जयपुर को विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Site) घोषित किया। यह न केवल राजस्थान के पर्यटन को नई पहचान देता है, बल्कि भारत की वैज्ञानिक परंपरा को भी वैश्विक मंच पर गौरव प्रदान करता है। यहां हर साल हजारों विदेशी और देशी पर्यटक आते हैं। स्कूल-कॉलेजों के विद्यार्थी और शोधकर्ता भी इसे अध्ययन का केंद्र मानते हैं।

पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र

जंतर-मंतर की यात्रा करने वाले पर्यटक यहां के यंत्रों को देखकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं। किसी को विश्वास ही नहीं होता कि इतने विशाल आकार के पत्थर के यंत्र आज से करीब 300 साल पहले बनाए गए थे। गाइड के जरिए जब उन्हें यह जानकारी मिलती है कि ये यंत्र सूर्य की चाल, समय और खगोलीय गणनाओं में कितने सटीक हैं, तो वे भारतीय विज्ञान और परंपरा की सराहना किए बिना नहीं रह पाते।

इसके अतिरिक्त, जंतर-मंतर सिटी पैलेस और हवा महल के समीप स्थित है, जिसके कारण यह जयपुर के गोल्डन ट्राएंगल टूरिज्म का अहम हिस्सा है। यहां आकर पर्यटक राजस्थान की संस्कृति, इतिहास और विज्ञान का अद्भुत संगम महसूस करते हैं।

संरक्षण और रखरखाव की चुनौती

इतिहासकार और पुरातत्व विशेषज्ञ मानते हैं कि जंतर-मंतर का संरक्षण अत्यंत जरूरी है। समय-समय पर यहां की दीवारों और यंत्रों की मरम्मत की जाती है ताकि ये लंबे समय तक पर्यटकों और शोधार्थियों को आकर्षित करते रहें। राजस्थान सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) मिलकर इसे संरक्षित रखने का काम कर रहे हैं।

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