सीकर जिले में नाबालिग बालिकाओं व महिलाओं के लापता होने व घर से भागने के मामले दिनों दिन बढ़ते जा रहे हैं। पुलिस विभाग की गुमशुदगी रिपोर्ट (एमपीआर) के अनुसार पिछले पांच साल में घरों से लापता होने वाली नाबालिग बालिकाओं, बालिग बालकों व बालिकाओं की संख्या दोगुनी हो गई है। पुलिस आंकड़ों के अनुसार 2020 में 106 नाबालिग बालिकाओं, 394 बालिकाओं व महिलाओं तथा 28 नाबालिग बालकों व 123 पुरुषों की गुमशुदगी रिपोर्ट दर्ज हुई। इसकी तुलना में पांच साल बाद 2024 में 151 नाबालिग बालिकाओं, 859 बालिकाओं व महिलाओं तथा 223 पुरुषों की एमपीआर दर्ज हुई। हालांकि इनमें से अधिकतर नाबालिग, महिलाएं व बालिकाएं कुछ माह या एक साल बाद वापस आ जाती हैं या फिर उनकी शादी हो जाती है और वे पुलिस संरक्षण ले लेती हैं। पुलिस के अनुसार सीकर जिले में हर माह नाबालिग, बालिग बालिकाओं व पुरुषों की 120 से अधिक एमपीआर दर्ज होती हैं। यह आंकड़ा हर साल बढ़ रहा है। कॉलेज जाने, बाजार जाने, कपड़े सिलवाने, दोस्त के पास जाने, परीक्षा देने, कोचिंग जाने के बहाने लड़के-लड़कियां घर से भाग रहे हैं। ये मामले लगातार बढ़ रहे हैं।
लड़के-लड़कियों की गुमशुदगी की रिपोर्ट में बढ़ोतरी
इतना ही नहीं, अब नाबालिग लड़कों के साथ-साथ वयस्क लड़कों और पुरुषों की गुमशुदगी की रिपोर्ट भी दर्ज की जा रही है।नाबालिग लड़कियों, वयस्क लड़कियों या महिलाओं के घर से भागने के मामलों के साथ-साथ लड़के-लड़कियों के गुमशुदा होने की एमपीआर भी बड़ी संख्या में दर्ज की जा रही है। सूत्रों के अनुसार, कई मामलों में सहमति से शादी करने वाले लड़के के परिवार वाले भी एमपीआर दर्ज कराते हैं, ताकि दूसरा पक्ष उन पर हावी न हो सके और पीछे छूटे परिवार को बेवजह परेशान न कर सके। हालांकि, कोर्ट मैरिज या आर्य समाज में शादी के बाद जोड़ा पुलिस से सुरक्षा मांगता है या लड़की के परिवार पर पाबंदियां लगाता है, ताकि वे किसी तरह का हमला या मारपीट न कर सकें।
लड़के-लड़कियों और महिलाओं के घर से भागने की घटनाएं हर जगह बढ़ गई हैं। इसके पीछे बढ़ती तकनीकी सुविधाओं, मोबाइल और सोशल मीडिया की भूमिका भी बड़ी है। सीकर जिले में शिक्षा के साथ-साथ धन और समृद्धि भी बढ़ी है, इसमें महिलाओं की भी भागीदारी रही है। समृद्धि और शिक्षा ने स्वतंत्रता को बढ़ावा दिया है। ऐसे में पाश्चात्य संस्कृति के हावी होने के कारण समाज में युवा अपने फैसले खुद लेने लगे हैं। युवाओं पर समाज और परिवार का नियंत्रण धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। परिवार के साथ बराबरी की बात भी पीछे छूट गई है, युवा अपनी मर्जी से जीवन जी रहे हैं।
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